बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
अथवा
नवजात में पाई जाने वाली विभिन्न सहज क्रियाओं उत्तर का वर्णन कीजिये।
उत्तर -
नवजात शिशु की क्रियाएँ
(Activities of the Infant)
नवजात शिशु की क्रियाएँ अनायास होती हैं। अधिकांश व्यर्थपूर्ण प्रकृति की होती हैं। नवजात शिशुओं की क्रियाओं को मुख्यतः दो भागों में बाँट सकते हैं-
(अ) सामान्य क्रियाएँ (Mass Activities) - यह शिशु की वे क्रियाएँ हैं जिनमें उसका सम्पूर्ण शरीर सम्बन्धित रहता है। यदि बालक के शरीर को कहीं से स्पर्श किया जाय तो बालक सम्पूर्ण शरीर के द्वारा अनुक्रिया करता है। यह भी देखा गया है कि बालक के दाहिने हाथ को यदि स्पर्श किया जाय तो बालक अपने बाएँ हाथ से भी समान अनुक्रिया करता है।
बालक में अधिकतर गतियाँ उसके चेहरे और हाथ-पैरों में होती हैं। शरीर के अन्य सभी अंगों में कम। गर्भकालीन अवस्था में जिन शिशुओं में क्रियाशीलता अधिक होती है, जन्म के बाद इन शिशुओं में क्रियाशीलता अधिक रहती है। अधिक प्रकाश या अधिक अंधेरे स्थान में यदि शिशु को ले जाया जाय, तो भी उसकी 'मास एक्टीविटीज' बढ़ जाती है। वातावरण के तापक्रम का प्रभाव भी बालक की इन क्रियाओं पर पड़ता है: परन्तु तापक्रम में थोड़ा परिवर्तन शिशु की इन क्रियाओं को प्रभावित नहीं करता है।
(ब) विशिष्ट क्रियाएँ (Specific Activities) - ये क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) सहज क्रियाएँ (Reflexes) - यह वह क्रियाएँ हैं, जो शिशु विशिष्ट संवेदनात्मक उद्दीपकों के प्रति एक निश्चित ढंग से करता है। यदि संवेदनात्मक उद्दीपक बार-बार उपस्थित किया जाय, तो भी ये क्रियाएँ परिवर्तित नहीं होती हैं। कुछ प्रमुख सहज-क्रियाएँ, जो शिशु में पाई जाती हैं, वह इस प्रकार से हैं-
(अ) आँख की पुतली से सम्बन्धित सहज क्रियाएँ (ब) पाँव के तलवे से सम्बन्धित सहज क्रियाएँ
(स) माँसपेशियों से सम्बन्धित सहज-क्रियाएँ
(द) चूसण सहज-क्रियाएँ ( Sucking Reflexes)
(ii) सामान्यीकृत अनुक्रियाएँ (Generalized Responses) - यह वह अनुक्रियाएँ हैं, जिनमें शरीर के एक से अधिक भार सम्मिलित होते हैं। जन्म के दो-तीन दिन तक शिशु की आँखें कभी खुल जाती हैं तो कभी बन्द हो जाती हैं। उसकी दोनों आँखों की क्रियाएँ समन्वयीकृत (Coordinate) नहीं होता हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक आँख से एक ओर और दूसरी आँख से दूसरी आँख से दूसरी ओर देख रहा है। शिश पहले दिन प्रकाश की ओर बहुत थोड़ी देर देख सकता है। कई बार जन्म के समय शिशुओं की आँखों से आँसू निकलते भी देखे गये हैं। इसी प्रकार जन्म के लगभग 20 मिनट बाद शिशुओं को अपना अंगूठा चूसते भी देखा गया है। जन्म के समय शिशु कभी अपना मुँह खोल लेता है, तो कभी बन्द कर लेता है। जन्म के कुछ दिनों तक बालक अपने सिर को बहुत थोड़ा घुमा सकता है। जन्म के कुछ दिनों बाद बालक को यदि बैठाया जाय, बैठाने पर वह आगे की ओर गिरता है। वह बिना किसी उद्देश्य के हाथ की मुट्ठी खोलता है और कभी बन्द कर लेता है। उसके हाथ और पैरों में गतियाँ जन्म के तुरन्त बाद प्रारम्भ हो जाती हैं।
(iii) नवजात शिशु का क्रन्दन (Crying of the Newborn) - नवजात शिशु का क्रन्दन जन्म के समय या जन्म के कुछ ही देर में प्रारम्भ हो जाता है। यही उसका प्रथम स्वर और भाषा होती है। जन्म के कुछ समय तक शिशु की यह भाषा पूर्णत: एक प्रकार की सहज क्रिया होती है। जन्म के समय बालक के क्रन्दन का बहुत बड़ा लाभ है। उसके क्रन्दन से उसके फेफड़े फूल जाते हैं और उसकी श्वसन क्रिया आरम्भ हो जाती है। श्वसन क्रिया प्रारम्भ होने से उसके रक्त को ऑक्सीजन मिलने लग जाती है। जन्म के समय वह पहला अवसर होता है जब मनुष्य अपनी आवाज प्रथम बार सुनता है। जन्म के 24 घण्टे बाद ही शिशु के क्रन्दन के अर्थ बदल जाते हैं। नवजात शिशुओं का क्रन्दन कुछ विशेष अक्षरों से प्रारम्भ होता है। रोते समय शिशु हाथ-पैर चलाता है और कभी हाथ की मुट्ठी खोलता है तो कभी बन्द करता है।
(iv) नवजात शिशु की संवेदनशीलता (Sensitivities of the Neonate) - नवजात शिशु की संवेदनशीलता का अध्ययन कठिन है; क्योंकि इस प्रकार के अध्ययन अन्तर्दर्शन विधि से किये जाते हैं। अतः यह भी बताना कठिन है कि कौन-सी संवेदनाएँ शिशु में पाई जाती हैं और कितनी मात्रा में पाई जाती हैं। गेसेल (Gesell, 1949) के अनुसार, “जो बच्चे गर्भकालीन अवस्था के पूर्ण होने से पहले ही जन्म ले लेते हैं, वे भी तीव्र उद्दीपकों के प्रति उसी प्रकार अनुक्रिया करते हैं, जिस प्रकार अन्य बालक। शिशुओं में अन्य संवेदनाओं की अपेक्षा स्पर्श-संवेदना के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं।
(अ) दृष्टि (Sight) - जन्म के समय आँख का रेटिना, जिसमें दृष्टि की संवेदना के सेल्स पाये जाते हैं, पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं होता है। जन्म के समय फोबिया में शंकु ( Cones) बहुत कम स्पष्ट होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि जन्म के समय शिशु आंशिक रूप से 'कलर ब्लाइण्ड' होता है। यद्यपि अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि जन्म के सातवें दिन शिशु रंगों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। स्मिथ ( Smith, 1936) का विचार है कि, “लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ जन्म के सात दिन से नौ दिन में रंग उद्दीपकों के प्रति अनुक्रिया अधिक करती हैं।"
(ब) श्रवण (Hearing) - जन्म के समय यह ज्ञानेन्द्री अन्य ज्ञानेन्द्रियों की अपेक्षा सर्वाधिक कम विकसित होती है। जन्म के तुरन्त बाद नवजात शिशु सुनते हैं या नहीं, इस सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों में एक मत नहीं है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि, जन्म के दस मिनट में ही बच्चा सुनने लग जाता है, परन्तु अन्य लोगों का विचार है कि जन्म के कुछ दिन बाद तक बालक पूर्णत: बहरा (Deaf) होता है।
(स) स्वाद (Taste) - अन्य ज्ञानेन्द्रियों की अपेक्षा यह ज्ञानेन्द्री अत्यधिक विकसित होती है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि शिशु मीठी उत्तेजनाओं के प्रति धनात्मक अनुक्रिया करते हैं और नमकीन, खट्टी तथ कड़वी चीजों के प्रति ऋणात्मक अनुक्रिया करते हैं। प्रैट (Pratt, 1954) का विचार है कि, स्वाद संवेदनशीलता सीमान्त के सम्बन्ध में शिशुओं में अधिक वैयक्तिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं।
(द) गन्ध ( Smell) - गन्ध संवेदनशीलता जन्म के समय काफी विकसित होती है या वह जन्म के कुछ ही दिनों में विकसित हो जाती है। माँ यदि अपने स्तन पर सिरके का अम्ल, अमोनिया, पेट्रोलियम, सन्तरे का तेल आदि लगाकर शिशु को स्तनपान कराये, तो शिशु स्तनपान नहीं करता है। प्रैट (Pratt, 1954) का विचार है कि, इस संवेदनशीलता में भी वैयक्तिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं।
(य) त्वक संवेदनशीलता (Skin Sensitivities) - स्पर्श, दबाव, ताप और पीड़ा सम्बन्धी संवेदनशीलता बालक में जन्म के समय पाई जाती है या इसका विकास जन्म के कुछ ही समय में हो सकता है। शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा कुछ अंग अधिक संवेदनशील होते हैं। अन्य अंगों की अपेक्षा होंठ अधिक संवेदनशील होते हैं। ताप उद्दीपकों की अपेक्षा शीत उद्दीपकों के प्रति शिशु अधिक अनुक्रिया करता है। जन्म के प्रथम दो दिन पीड़ा-संवेदना कुछ कमजोर होती है। होंठ, हथेली और पैर के तलवे में यह संवेदना अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसी प्रकार पलक, माथे पर अनेक नाक की झिल्ली में यह संवेदना अधिक मात्रा में पाई जाती हैं।
(v) नवजात शिशु के संवेग (Emotions of the Neonate) - नवजात शिशुओं के संवेगों के सम्बन्ध में जो अध्ययन हुए हैं, वे कम हैं परन्तु जो भी अध्ययन हुए हैं, वे विस्तृत अधिक | वाटसन (Watson, 1925) के अनुसार, शिशु में जन्म के समय या जन्म के कुछ ही समय बाद तीन संवेग पाए जाते हैं। वाटसन का यह भी विचार है कि, यह संवेग कुछ विशिष्ट उद्दीपकों के द्वारा शिशुओं में उत्पन्न किए जा सकते हैं। वाटसन के द्वारा बताये हुए तीन प्रमुख संवेग हैं-भय क्रोध और प्रेम बैकविन (Bakwin, 1947) का विचार है कि, नवजात शिशुओं की संवेगात्मक अनुक्रियाएँ अत्यधिक विकसित होती हैं। उनके अनुसार, जो नवजात शिशु गर्भकालीन अवस्था को पूर्ण किए बिना उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें भी समान प्रकार की संवेगात्मक अनुक्रियाएँ पाई जाती हैं।
(vi) नवजात शिशुओं में अधिगमन की क्षमता (Capacity for Learning in Infants) - कोई भी प्राणी किसी समस्या या क्रिया का अधिगम तब कर सकता है जब वह उस समस्या के सम्बन्ध में जागरूक हो। किसी समस्या के अधिगम के लिए यह भी आवश्यक है कि अधिगमकर्त्ता के स्नायु इतने विकसित और परिपक्व हों कि वह समस्या का अधिगम कर सकें। नवजात शिशुओं के स्नायु और मस्तिष्क इतने परिपक्व नहीं होते हैं कि वह किसी समस्या का सरल से सरल विधि द्वारा अधिगम कर सकें। नवजात शिशुओं में जागरूकता भी नहीं के बराबर पाई जाती है।
(vii) नवजात शिशुओं का व्यक्तित्व (Personality of the Neonate) - नवजात शिशुओं के व्यक्तित्व में अन्तर कुछ ही दिनों में दृष्टिगोचर होने लगता है। हम सभी जानते हैं कि कुछ नवजात शिशु सोने की तरह अच्छे और कीमती भी होते हैं और कुछ माता-पिता के लिए अत्यधिक परेशानी पैदा करने वाले होते हैं। नवजात शिशुओं के व्यक्तित्व में अन्तर वंशानुक्रम और वातावरण सम्बन्धी कारकों के कारण तो होते ही हैं, साथ ही साथ व्यक्तित्व में अन्तर अपरिपक्व जन्म (Premature Birth), जन्म के समय की परिस्थितियाँ तथा स्वास्थ्य की दशाएँ आदि कारकों के कारण भी होते हैं।
गर्भकालीन अवस्था में माँ की विचारधारा भी बालक के व्यक्तित्व को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती है। कई बार यह देखा गया है कि बच्चा जब इच्छित यौन का नहीं होता है, तो माँ अपने वर्तमान अनिच्छित बालक का अधिक अच्छी तरह लालन-पालन नहीं कर पाती हैं।
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- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
- प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
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- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
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- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
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- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
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